फेफड़ों में कई तरह की बीमारियों होती हैं, पल्मोनरी एडिमा यानी फेफड़ों में पानी भरना भी उन्हीं में से एक है। इस स्थिति में फेफड़ों में मौजूद छोटी-छोटी थैलियों में पानी या द्रव जमा हो जाता है जिसके कारण मरीज को सांस में लेने में कठिनाई होती है।
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फेफड़ों में पानी भरना एक गंभीर समस्या हो सकती है जिसका समय पर जांच और उपचार आवश्यक है। फेफड़ों में पानी या तरल पदार्थ जमा होने पर शरीर में ऑक्सीजन की कमी होती है। साथ ही, दिल की मांसपेशियां खून को पम्प करने में असमर्थ होती हैं, जिससे दिल को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में ब्लड वैसेल्स पर एक्स्ट्रा प्रेशर पड़ता है और फेफड़े पर्याप्त मात्रा में हवा नहीं ले पाते हैं और मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है।
फेफड़ों में पानी जमा होने के अनेक कारण हो सकते हैं। आमतौर पर निमोनिया होने या शरीर का कोई अंग खराब होने पर (जैसे कि हार्ट फेल्योर, किडनी खराब होना या लिवर सिरोसिस आदि) फेफड़ों में पानी भरने लगता है। इन सबके अलावा, निम्न स्वास्थ्य समस्याएं इसका कारण बन सकती हैं:
साथ ही, धमनियों (आर्टरीज) के सिकुड़ने पर भी फेफड़ों में पानी जमा होने का खतरा बढ़ जाता है।
फेफड़ों में पानी जमा होने पर डॉक्टर कुछ परीक्षण करने का सुझाव देते हैं जैसे कि:
फेफड़ों में तरल पदार्थ का पता लगाने के लिए छाती का एक्स-रे कराया जाता है। यह आमतौर पर सबसे पहला परीक्षण होता है।
फेफड़ों में पानी भरने की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड भी कराया जा सकता है। जब एक्स-रे से कुछ चीजों की पुष्टि नहीं हो पाती है तो अल्ट्रासाउंड किया जाता है।
ब्लड टेस्ट से अंतर्निहित कारण का पता लगाने में मदद मिलती है। इसमें ब्लड का सैंपल लेकर लैब में जांच के लिए भेजा जाता है।
यह परीक्षण दिल की इमेज बनाने के लिए ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल करता है। इससे दिल से जुड़े कारणों का पता चलता है।
फेफड़ों में जमा पानी या तरल पदार्थ को निकालने के लिए थोरासेंटेसिस प्रक्रिया की जाती है। इसमें, दो निचली पसलियों के बीच की त्वचा में एनेस्थीसिया दिया जाता है और फिर एक छोटी सी सुई डाली जाती है। पानी को निकालने के बाद, फेफड़ों में पानी और मवाद बनने की वजह का पता लगाया जा सकता है।
फेफड़ों में पानी भरने के कारण मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगती है। इसलिए इस बीमारी का जल्द से जल्द इलाज करना आवश्यक होता है। मरीज के शरीर में ऑक्सीजन की पूर्ति करना इस बीमारी के इलाज में सबसे पहला कदम होता है। मरीज को प्रॉपर ऑक्सीजन मिल सके इसलिए ऑक्सीजन मास्क या अन्य उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है।
उसके बाद, फेफड़ों में पानी जमा होने के सटीक कारण का पता लगाकर, उपचार योजना बनाई जाती है। आमतौर पर उपचार के तौर पर कुछ दवाएं निर्धारित की जाती हैं जो फेफड़ों से एक्स्ट्रा पानी को निकालने, दिल की मांसपेशियों को मजबूत बनाने और धड़कनों को कंट्रोल करने का काम करती हैं।
कई बार जब दवाओं से कोई फायदा नहीं होता है या मरीज की स्थिति गंभीर होती है तो उसे आईसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) में एडमिट किया जा सकता है। इन सबके अलावा, मरीज को अपनी लाइफस्टाइल और खानपान में कुछ ख़ास बदलाव करने का भी सुझाव दिया जाता है।
फेफड़ों में पानी भरने पर जल्द से जल्द उपचार पाना आवश्यक है, क्योंकि उपचार में देरी होने पर ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीज की मृत्यु भी हो सकती है। समय पर सही उपचार से फेफड़ों में जमा पानी बाहर निकालने के कुछ ही दिनों के अंदर मरीज ठीक हो जाते हैं। हालाँकि, कुछ मरीजों को लंबे समय तक ब्रीडिंग मशीन (सांस लेने में मदद करने वाली मशीन) का इस्तेमाल करना पड़ सकता है।