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  5. किडनी कैंसर(Kidney Cancer) के स्टेजेस और ट्रीटमेंट
CK Birla Hospital
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किडनी कैंसर एक प्रकार का कैंसर है, जो किडनी में होता है। इसके मुख्य लक्षणों में पेशाब में खून आना, पीठ दर्द और वजन कम होना शामिल हैं। इस ब्लॉग में हम किडनी कैंसर के स्टेज और ट्रीटमेंट के बारे में विस्तार से जानेंगे।

किडनी कैंसर के स्टेज(Stages of Kidney Cancer)

किडनी कैंसर आमतौर पर कई स्टेज में बढ़ता है। इसके प्रकार की पुष्टि इस बात से की जाती है कि ट्यूमर शरीर के अन्य हिस्सों में कहाँ तक तक फैल चुका है। किडनी कैंसर को चार स्टेज में बांटा गया है जिसमें शामिल हैं:

स्टेज 1:

आमतौर पर किडनी कैंसर में ट्यूमर व्यास में 7 सेंटीमीटर (लगभग 2.75 इंच) से छोटे होते हैं और ये किडनी तक ही सीमित होते हैं।

स्टेज 2:

स्टेज 1 की तुलना में, ट्यूमर बड़े होते हैं, लेकिन फिर भी ये किडनी तक ही सीमित होते हैं। स्टेज 2 में, ट्यूमर का व्यास आमतौर पर 7 से 10 सेंटीमीटर (लगभग 2.75 से 3.94 इंच) के बीच होता है।

स्टेज 3:

इस स्टेज में, ट्यूमर किडनी के आस-पास के टिशू या संरचनाओं, जैसे कि ब्लड वेसेल्स या एड्रेनल ग्लैंड में फैल सकते हैं। ट्यूमर का आकार अलग-अलग हो सकता है, लेकिन आमतौर पर ये 10 सेंटीमीटर से बड़े होते हैं।

स्टेज 4:

इस स्टेज में ट्यूमर, शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाते हैं। प्राथमिक ट्यूमर का आकार अलग हो सकता है और एक से अधिक ट्यूमर मौजूद हो सकते हैं। किडनी कैंसर के चौथे स्टेज में, डॉक्टर कैंसर के आकार के बजाय इस बात पर ज़्यादा ध्यान देते हैं कि ट्यूमर शरीर के किस हिस्सों में फैल चूका है।

डॉक्टर से कब मिलें?

यदि आप नीचे दिए गए लक्षणों को अनुभव करते हैं तो तुरंत डॉक्टर से मिलें:

  • पेशाब में खून आना
  • लगातार पीठ में दर्द रहना
  • अचानक से वजन घटना
  • थकान महसूस होना
  • पेट में एक गांठ होना

अगर ये लक्षण बने रहते हैं या गंभीर हो जाते हैं तो तुरंत मेडिकल सहायता लें। शीघ्र निदान और उपचार से इन लक्षणों में सुधार होता है।

किडनी कैंसर का ट्रीटमेंट

किडनी कैंसर का ट्रीटमेंट इसकी गंभीरता, ट्यूमर के आकार और मरीज़ के समग्र स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। इसके मुख्य उपचार में शामिल हैं: 

सर्जरी:

यह किडनी कैंसर का सबसे सामान्य इलाज है, जिसमें ट्यूमर या पूरी किडनी को निकालना शामिल है। इस सर्जरी के दो मुख्य प्रकार हैं:

आंशिक नेफ्रेक्टोमी:

केवल ट्यूमर और स्वस्थ ऊतक का एक छोटा सा हिस्सा हटाना।

रेडिकल नेफ्रेक्टोमी:

आस-पास के ऊतकों सहित पूरी किडनी को हटाना। कभी-कभी, एड्रेनल ग्लैंड और लिम्फ नोड्स को भी बाहर निकाल दिया जाता है।

रिसेक्शन और एम्बोलिज़ेशन:

एब्लेशन:

ट्यूमर को हटाए बिना उसे नष्ट कर देता है। इन प्रक्रिया में रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन और क्रायोएब्लेशन (ट्यूमर को फ्रीज करना) शामिल हैं।

एम्बोलिज़ेशन:

ट्यूमर में खून का प्रवाह बंद कर देता है, जिससे यह सिकुड़ जाता है। यह ट्यूमर को पोषण देने वाली ब्लड वेसेल्स में छोटे कणों को इंजेक्ट करके किया जाता है।

टारगेटेड थेरेपी

विशिष्ट जीन या प्रोटीन को टारगेट करने के लिए दवाओं का उपयोग किया जाता है जो कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने में मदद करते हैं। ये दवाएं कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोक सकती हैं।

इम्यूनोथेरेपी

इससे कैंसर से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा मिलती है। चेकपॉइंट ब्लॉकर जैसी दवाएं प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और उन्हें में मदद करती हैं। इम्यूनोथेरेपी थेरेपी एडवांस किडनी कैंसर के लिए उपयोगी है।

रेडिएशन थेरेपी

इस थेरेपी में कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए उच्च-ऊर्जा किरणों का उपयोग होता है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल किडनी कैंसर के लिए नहीं किया जाता है, लेकिन जब कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाता है तो लक्षणों से राहत दिलाने में सहायक हो सकता है।

हर मरीज़ की उपचार योजना यूनिक होती है। इसलिए किडनी कैंसर का उपचार करने से पहले डॉक्टर अनेक बातों पर विचार करते हैं जैसे कि मरीज़ का समग्र स्वास्थ्य, किडनी कैंसर का स्टेज और लक्षण आदि।

FAQs

किडनी कैंसर के सामान्य लक्षण क्या हैं?

किडनी कैंसर के सामान्य लक्षण में पेशाब में खून, लगातार पीठ में दर्द, बिना कारण वजन कम होना, थकान और पेट में गांठ आदि शामिल हैं।

किडनी कैंसर के मुख्य जोखिम कारक क्या हैं?

धूम्रपान, मोटापा, उच्च रक्तचाप, किडनी कैंसर का पारिवारिक इतिहास और कुछ आनुवंशिक स्थितियाँ किडनी कैंसर के खतरे को बढ़ाती हैं।

किडनी कैंसर का निदान कैसे किया जाता है?

इमेजिंग परीक्षण (सीटी स्कैन, एमआरआई, अल्ट्रासाउंड), खून और पेशाब की जांच एवं कभी-कभी बायोप्सी के माध्यम से किडनी कैंसर का निदान किया जाता है।

क्या किडनी कैंसर को रोका जा सकता है?

हालांकि सभी मामलों को रोका नहीं जा सकता है, धूम्रपान जैसे जोखिम कारकों को कम करना, स्वस्थ वजन बनाए रखना, रक्तचाप का प्रबंधन करना और नियमित जांच से जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।